Ahoi Aashtami: क्या आप भी रख रही हैं अपनी संतान के उज्जवल भविष्य हेतु अहोई अष्टमी का व्रत? यहां जानें संपूर्ण पूजा विधि



अहोई अष्टमी का व्रत हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह विशेष दिन माताओं के लिए अपने बच्चों की लंबी उम्र, उत्तम…

अहोई अष्टमी का व्रत हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह विशेष दिन माताओं के लिए अपने बच्चों की लंबी उम्र, उत्तम स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना करने का अवसर होता है। इस व्रत को “अहोई आठे” के नाम से भी जाना जाता है, और इसकी पूजा विधि करवा चौथ से थोड़ी भिन्न होती है। जहां करवा चौथ में चंद्रमा के दर्शन करके व्रत का समापन किया जाता है, वहीं अहोई अष्टमी पर माताएं तारे देखकर व्रत का पारण करती हैं। इस वर्ष, अहोई अष्टमी का व्रत **13 अक्टूबर** को मनाया जाएगा। इस अवसर पर हम वृंदावन के ज्योतिषाचार्य **राधाकांत वत्स** से जानेंगे कि अहोई अष्टमी की संपूर्ण पूजा विधि क्या है।

अहोई अष्टमी की पूजा विधि (Ahoi Ashtami Puja Vidhi 2025)

अहोई अष्टमी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना आवश्यक है। इसके पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें। हाथ में जल, फूल और चावल लेकर संतानों की दीर्घायु और कल्याण के लिए निर्जला व्रत का संकल्प लें। यह व्रत माताओं के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है, जिसमें वे अपने बच्चों के लिए कठिन उपवास रखती हैं।

शाम की पूजा के लिए घर की उत्तर दिशा की दीवार पर गेरू या कुमकुम से अहोई माता की आकृति बनाई जाती है। इस आकृति में **आठ कोष्ठक** यानि आठ कोने या खाने होने चाहिए, क्योंकि यह व्रत अष्टमी तिथि से जुड़ा है। यह आकृति माता अहोई की पूजा का प्रमुख हिस्सा होती है और इसके प्रति श्रद्धा अर्पित की जाती है।

इसके बाद, पूजा के लिए एक कलश पर मिट्टी का ढक्कन रखें। उस ढक्कन पर सिंघाड़ा या खील रखें। माता अहोई की तस्वीर को कुमकुम, रोली और हल्दी लगाकर सजाएं। उन्हें पुष्प माला और लाल चुनरी अर्पित करें। इस दौरान शुद्ध देसी घी का एक दीपक जलाना न भूलें और इसे पूरी पूजा के दौरान जलाते रहें।

माता को विभिन्न पकवानों का भोग भी अर्पित किया जाता है, जिसमें पूरी, हलवा, पुए और मीठे चावल शामिल होते हैं। इसके साथ ही कच्चा दूध, सिंघाड़ा, मूली और फल भी अर्पित करने का महत्व है। सभी माताएं एक साथ बैठकर अहोई माता की व्रत कथा को सुनें या पढ़ें। यह कथा माताओं को प्रेरित करती है और उनके व्रत को साकार करती है।

कथा सुनने के बाद, अहोई माता की आरती गाने का समय आता है। जब शाम को तारे आसमान में चमकने लगते हैं, तब व्रत रखने वाली महिलाएं पूजा स्थल से बाहर जाकर तारों का दर्शन करती हैं। कलश में रखे जल को तारों को अर्घ्य के रूप में अर्पित किया जाता है। इस समय माता अपनी संतान की सुरक्षा और दीर्घायु की प्रार्थना करती हैं।

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तारों को अर्घ्य देने के बाद, माताएं अपने संतान के हाथ से या पति के हाथ से जल पीकर व्रत का पारण करती हैं और प्रसाद ग्रहण करती हैं। यह प्रसाद माता के प्रति आभार प्रकट करता है।

पूजा के बाद, अहोई माता की माला और एक करवा किसी ब्राह्मण को या अपनी सास को भेंट करना शुभ माना जाता है। यह व्रत माताओं के अपने संतान के प्रति गहरे प्रेम और समर्पण को दर्शाता है। यदि आप इस विधि का पालन करती हैं, तो आप भी अहोई अष्टमी का व्रत सफलता पूर्वक संपन्न कर सकती हैं।

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image credit: herzindagi

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