सीहोर में किसानों का प्रदर्शन: हक की मांग लेकर सड़क पर उतरे सैकड़ों किसान
सोमवार को सीहोर जिले के सैकड़ों किसानों का धैर्य आखिरकार टूट गया। अमलाहा से शुरू हुई ट्रैक्टरों की लंबी कतार जब कलेक्ट्रेट पहुंची, तो वहां किसानों का एक विशाल सैलाब उमड़ पड़ा। नारों और तख्तियों के साथ किसानों ने स्पष्ट रूप से कहा कि अब सिर्फ वादे नहीं चाहिए, बल्कि उन्हें उनके हक की मांग है। किसानों का कहना है कि पिछले **पांच वर्षों** से उनकी सोयाबीन फसल लगातार खराब हो रही है, लेकिन प्रशासन ने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
किसानों की यह रैली करीब **30 किलोमीटर** का सफर तय करके कलेक्ट्रेट पहुंची। इस विशाल रैली का नेतृत्व किसान नेता सोहन शंकर लाल पटेल, करणी सेना के अध्यक्ष जीवन सिंह शेरपुरा और समाजसेवी एम.एस. मेवाड़ा ने किया। रैली में शामिल किसानों ने कहा कि जब अन्य जिलों के किसानों को राहत राशि मिल सकती है, तो केंद्रीय कृषि मंत्री के गृह जिले सीहोर को क्यों वंचित रखा गया है। यह सवाल उठाते हुए किसानों ने प्रशासन की निष्क्रियता पर नाराजगी जताई।
मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा
कलेक्ट्रेट पहुंचने के बाद किसानों ने अनुविभागीय अधिकारी तन्मय वर्मा को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में किसानों ने मांग की कि उनकी खराब हुई सोयाबीन फसलों का बीमा मुआवजा तुरंत जारी किया जाए और जिले को आरबीसी 6-4 के तहत राहत राशि में शामिल किया जाए। किसानों ने यह भी कहा कि अगर उनकी मांगें पूरी नहीं की गईं, तो वे आने वाले दिनों में और उग्र आंदोलन करेंगे।
किसानों की पीड़ा: खेत सूख रहे हैं, उम्मीदें मुरझा रही हैं
इस रैली में शामिल किसानों ने भावुक होते हुए बताया कि उन्होंने अपनी फसलें दवा कंपनियों के भरोसे बोई थीं, लेकिन खराब दवाओं ने उनकी फसलें बर्बाद कर दीं। उन्होंने मांग की कि जिन दवाओं के कारण उनकी फसलें नष्ट हुईं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए और कंपनियों से किसानों के नुकसान की भरपाई कराई जाए। किसानों की यह पीड़ा उनके चेहरों पर स्पष्ट रूप से नजर आ रही थी, जो उनकी मेहनत और संघर्ष की कहानी बता रही थी।
नारों से गूंजा सीहोर: बीमा और राहत की मांग
किसानों ने रैली के दौरान “किसानों का हक दिलाओ”, “राहत राशि दो” और “बीमा राशि दो” जैसे नारों से सीहोर की सड़कों को गूंजित कर दिया। हर किसान के चेहरे पर मेहनत की लकीरें थीं, जो उनकी संघर्ष की कहानी बयां कर रही थीं। ट्रैक्टरों पर बैठे युवा और बुजुर्ग किसान समान रूप से अपनी आवाज बुलंद कर रहे थे। यह प्रदर्शन केवल एक आंदोलन नहीं था, बल्कि किसानों की हताशा और उनकी अधिकारों के लिए लड़ाई का प्रतीक था।
सरकार से अपील: हमारी आवाज सुने
किसानों ने चेतावनी दी कि अगर प्रशासन ने उनकी मांगें नहीं मानीं, तो उनका आंदोलन और उग्र रूप ले सकता है। समाजसेवी एम.एस. मेवाड़ा ने कहा कि सीहोर का किसान आज दुखी है, लेकिन टूटा नहीं है। उन्होंने कहा, “जब तक हमें न्याय नहीं मिलेगा, तब तक हमारे ट्रैक्टर नहीं रुकेंगे।” यह संघर्ष किसानों के हक के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है, जो उन्हें अपनी आवाज उठाने का मौका दे रहा है।
किसानों की मांगों पर प्रशासन की प्रतिक्रिया
इस प्रदर्शन के बाद प्रशासन की ओर से क्या कदम उठाए जाएंगे, यह देखना होगा। किसानों की समस्याएं केवल एक क्षेत्र विशेष की नहीं हैं, बल्कि यह पूरे देश में किसानों की समस्याओं का एक हिस्सा हैं। सरकार को इस दिशा में गंभीरता से विचार करना होगा और किसानों की मांगों को सुनना होगा।
फिलहाल, सीहोर के किसानों ने अपनी आवाज को बुलंद किया है, और अब यह प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वे उनकी मांगों पर ध्यान दें। किसानों का यह आंदोलन एक संकेत है कि जब तक उनकी समस्याओं का समाधान नहीं होगा, तब तक वे चुप नहीं बैठेंगे।
राहत राशि से वंचित किसान सड़क पर उतरे
राहत राशि से वंचित किसान सड़क पर उतरे