अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर ताजा संघर्ष: तालिबान की बढ़ती ताकत
इस सप्ताह अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर नए संघर्ष की शुरुआत हुई है, जो पाकिस्तान की बढ़ती कमजोरियों को उजागर कर रही है। हालात यह है कि तालिबान के खिलाफ पाकिस्तान की सैन्य ताकत के बावजूद, तालिबान ने फिर से पाकिस्तानी सैनिकों को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया है। ताजा झड़पें बुधवार को स्पिन बोल्डक और चमन सीमा पार में भड़की, जिसमें अफगानिस्तान में कम से कम 12 लोग जान गंवा चुके हैं और 100 से अधिक लोग घायल हुए हैं, वहीं पाकिस्तान में 15 नागरिकों की मौत की सूचना है।
तालिबान ने पाकिस्तान पर बिना किसी provocation के फायरिंग करने का आरोप लगाया है और चेतावनी दी है कि यदि इस्लामाबाद ने नागरिकों को निशाना बनाना जारी रखा, तो वह डुरंड रेखा को मान्यता नहीं देगा। यह रेखा उपनिवेशीय युग में बनाई गई थी और दोनों देशों के बीच विभाजन का प्रतीक है। तालिबान के लड़ाकों द्वारा जारी वीडियो में पकड़े गए पाकिस्तानी चौकियों और अफगान शहरों में प्रदर्शित की गई सेना की वर्दी को दिखाया गया है, जो पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठान के लिए एक प्रतीकात्मक अपमान है।
पाकिस्तान की सैन्य ताकत और तालिबान की सफलता
हालांकि पाकिस्तान के पास लगभग 12 लाख सैनिक हैं, जबकि तालिबान की संख्या केवल 1.1 लाख है, इसके बावजूद अफगान मिलिशिया ने बार-बार पाकिस्तानी सैनिकों को पीछे हटने पर मजबूर किया है। विश्लेषकों का मानना है कि इन झड़पों ने सेना के प्रमुख आसिम मुनीर को हिला दिया है, जिन्होंने रिपोर्ट के अनुसार एक आपात बैठक बुलाई है जिसमें उन्होंने अपनी इंटेलिजेंस विंग और क्षेत्रीय कमांडरों से तालिबान के हमलों की भविष्यवाणी करने में विफलता पर सवाल उठाए हैं।
इस संघर्ष को और जटिल बनाते हुए, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) की भी भागीदारी है, जिसने पिछले सप्ताह पाकिस्तानी बलों पर छह हमले किए हैं, जिसमें लगभग 40 सैनिकों की मौत हो गई है। काबुल में तालिबान सरकार, जो मुख्य रूप से पश्तून गुटों द्वारा नियंत्रित है, ने टीटीपी लड़ाकों के प्रति खुला समर्थन दिखाया है।
पाकिस्तान की स्थिति और बढ़ती चुनौतियाँ
पाकिस्तान के लिए यह स्थिति और भी चिंताजनक है क्योंकि उसे डर है कि बलूच विद्रोही, जो अफगान सीमा के पास सक्रिय हैं, तालिबान के साथ मिलकर काम कर सकते हैं और सीमा पार हथियारों की तस्करी का लाभ उठा सकते हैं। इस प्रकार, पाकिस्तान की सुरक्षा स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण होती जा रही है।
इस नवीनतम संघर्ष ने एक कड़वी विडंबना को उजागर किया है, क्योंकि तालिबान, जिसे पाकिस्तान ने कभी अपनी “स्ट्रैटेजिक डेप्थ” के लिए पोषित किया था, अब उसकी सत्ता को चुनौती दे रहा है। तालिबान के लड़ाकों द्वारा पाकिस्तानी सेना की वर्दी पहनने की छवियाँ पाकिस्तान के कमजोर नियंत्रण और क्षेत्रीय शर्मिंदगी का एक शक्तिशाली प्रतीक बन गई हैं।
भविष्य की संभावनाएँ
आगे बढ़ते हुए, पाकिस्तान को अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। यह स्पष्ट है कि तालिबान की गतिविधियाँ न केवल अफगानिस्तान में बल्कि पाकिस्तान के भीतर भी उसकी स्थिति को कमजोर कर रही हैं। ऐसे में, इस्लामाबाद को अपनी सुरक्षा नीतियों को सुधारने और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए एक नई दिशा में कदम बढ़ाने की आवश्यकता है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी इस स्थिति का अवलोकन करना चाहिए और पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान के बीच शांति स्थापना के लिए सहायता प्रदान करनी चाहिए। यदि स्थिति को नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह न केवल क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक सुरक्षा के लिए भी खतरा बन सकता है।