मृगेंद्रमणि सिंह/ Bihar Election 2025: बिहार के अररिया जिले के एक छोटे से गांव ने जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के खिलाफ अनोखा विरोध प्रदर्शन किया है। गांव के लोगों ने एक बोर्ड लगाया है, जिसमें लिखा है, “रोड नहीं तो, वोट नहीं।” यह बोर्ड उस स्थान पर लगाया गया है, जहाँ से सांसद और विधायक प्रतिदिन गुजरते हैं। इसके बावजूद, प्रशासनिक अधिकारियों का ध्यान इस बोर्ड पर नहीं जा रहा है। जब हमारी टीम ने अररिया विधानसभा क्षेत्र के बसंतपुर पंचायत के वार्ड संख्या 03 का दौरा किया, तो लोगों का सब्र टूट गया। उन्होंने बताया कि बरसात के मौसम में उनका गांव टापू में बदल जाता है, जिससे उन्हें बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
ग्रामीणों का दर्द और उनके संघर्ष
बसंतपुर गांव के ग्रामीणों ने बताया कि उनके गांव तक पहुंचने के लिए एक पुल का निर्माण अति आवश्यक है। ग्रामीणों का मानना है कि अगर चार स्पेन का पुल बना दिया जाए, तो गांव को मुख्य सड़क से जोड़ा जा सकता है। इसके लिए एक अच्छा प्राक्कलन होना चाहिए, ताकि यह सड़क आरडब्ल्यूडी योजना के तहत बन सके। यदि ऐसा हुआ, तो ग्रामीण मुख्य सड़क से जुड़ जाएंगे, जिससे उनकी समस्याएं काफी हद तक हल हो जाएंगी।
अररिया के इस गांव के लोग अपने हालात को लेकर बेहद चिंतित हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव के समय नेताओं के वादे कभी पूरे नहीं होते। हर बार चुनाव के समय नेताओं का आना-जाना होता है, लेकिन जब विकास की बात आती है, तो वे मुंह मोड़ लेते हैं। यह स्थिति ऐसी है कि अब ग्रामीणों ने यह ठान लिया है कि जब तक उनकी सड़क नहीं बनती, तब तक वे वोट नहीं देंगे।
नाव के पलट जाने का दर्द
अरूण शर्मा, एक ग्रामीण, ने बताया कि पिछले साल 28 सितंबर को वह अररिया से लौट रहे थे। रास्ते में तालाब के पानी में नाव पलट गई, जिससे उनका पैर टूट गया। उन्होंने कहा कि उस दिन से उन्होंने निर्णय लिया कि जब तक जनप्रतिनिधि उनकी सड़क नहीं बनाएंगे, वे वोट नहीं देंगे। यह उनकी जिंदगी का एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने उन्हें राजनीतिक जागरूकता दी।
नाव का सहारा: जीवन की जद्दोजहद
शिवानंद चौधरी ने बताया कि बारिश के दिनों में उनकी जिंदगी जेल जैसी हो जाती है। उन्हें मुख्य सड़क तक पहुंचने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता है। कई बार जब नाव नहीं होती, तो वे केला के थन का उपयोग करते हैं। ऐसे में उनकी जान को खतरा होता है। उन्होंने कहा कि कई बार उन्होंने बड़े नेताओं से गुहार लगाई, लेकिन कोई उनकी समस्याओं को सुनने को तैयार नहीं है।
अवसाद और प्रशासन की लापरवाही
राजेंद्र बहरदार ने कहा कि हर वोट की अहमियत होती है, लेकिन क्या हम सिर्फ वोट दें और नेतागण अपनी जिम्मेदारियों से बच जाएं? इस तालाब में डूबने से कई लोगों की मौत हो चुकी है। यहां की स्थिति बेहद चिंताजनक है, और इस बार ग्रामीणों ने ठान लिया है कि जब तक रोड नहीं बनेगा, तब तक वे वोट नहीं डालेंगे।
नेताओं के वादों का कोई असर नहीं
संतलाल चौधरी ने अपने 65 वर्षों के अनुभव को साझा करते हुए कहा कि उन्होंने कई मुखिया और विधायक देखे हैं, लेकिन विकास की कोई परत भी नहीं चढ़ी है। उन्होंने कहा कि केवल आश्वासन मिलते हैं, लेकिन काम नहीं होता। विधायक और सांसद को जब उनकी जरूरत महसूस होगी, तभी वे वोट डालने के लिए तैयार होंगे।
आखिरी ख्वाहिश: सड़क का निर्माण
मिश्रानंद चौधरी, जो 72 वर्ष के हैं, ने कहा कि उन्होंने कई चुनाव देखे हैं, और अब उनकी अंतिम ख्वाहिश यह है कि वह अपने जीवन में इस सड़क का निर्माण होते हुए देख सकें। उन्होंने कहा कि नेता केवल चुनावी वादे करते हैं, लेकिन जब जीत जाते हैं, तो वे लौटकर नहीं आते। यह स्थिति ग्रामीणों के लिए अत्यंत निराशाजनक है।
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