75 Years of New Stream Magazine: बिहार में हिन्दी पत्रकारिता का जश्न



बिहार में हिन्दी पत्रकारिता का अद्भुत सफर हिन्दी पत्रकारिता का इतिहास केवल एक साधारण कथा नहीं है, बल्कि यह विचार, लेखन और जनजागरण की एक समृद्ध परंपरा का प्रतीक है।…

बिहार में हिन्दी पत्रकारिता का अद्भुत सफर

हिन्दी पत्रकारिता का इतिहास केवल एक साधारण कथा नहीं है, बल्कि यह विचार, लेखन और जनजागरण की एक समृद्ध परंपरा का प्रतीक है। बिहार इस दिशा में एक महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है। सत्रहवीं शताब्दी के भक्ति साहित्य से लेकर उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दी की पत्रकारिता तक, इस प्रदेश ने साहित्य और सामाजिक आंदोलनों की कई ऐसी कड़ियाँ जोड़ दी हैं, जिन्होंने पूरे देश को नई दिशा दी। इन सबसे महत्वपूर्ण है ‘नई धारा’ पत्रिका, जिसने अप्रैल 1950 से अपनी यात्रा शुरू की और आज पचहत्तर वर्ष पूरे कर चुकी है। यह अवसर केवल पत्रिका के दीर्घ जीवन का उत्सव नहीं, बल्कि बिहार की पत्रकारिता, हिन्दी साहित्य और सामाजिक चिंतन की उस जीवंत परंपरा का भी स्मरण है, जिसने कठिन समय में भी अपनी रचनात्मकता और निर्भीकता बनाए रखी।

हिन्दी पत्रकारिता का विकास और नई धारा पत्रिका

भारत में हिन्दी पत्रकारिता का उद्भव 1826 में पंडित युगल किशोर शुक्ल के ‘उदन्त मार्तण्ड’ से माना जाता है। किन्तु बिहार में पत्रकारिता का बीजारोपण उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ। पटना, भागलपुर, मुजफ्फरपुर और गया जैसे नगर उस समय शिक्षा और आंदोलन के केन्द्र बन रहे थे।

इस दौरान राष्ट्रवादी चेतना, समाज सुधार और हिन्दी भाषा की प्रतिष्ठा के लिए पत्र-पत्रिकाएँ निकाली जाने लगीं। भागलपुर से निकली ‘बिहार बन्धु’ (1872) ने हिन्दी भाषा और क्षेत्रीय अस्मिता को आवाज़ दी। मुजफ्फरपुर से ‘आर्यगजट’ ने आर्य समाज के विचारों को प्रचारित किया और पटना से ‘भारत मित्र’, ‘बिहार हेराल्ड’ और ‘सर्चलाइट’ जैसी पत्रिकाएँ बिहार से बाहर तक प्रभावी रहीं। इस प्रकार बीसवीं शताब्दी के आरम्भ तक हिन्दी पत्रकारिता स्वतंत्रता आंदोलन से गहराई से जुड़ गई।

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नई धारा के शुरूआती सम्पादक: रामवृक्ष बेनीपुरी, शिवपूजन सहाय और उदयराज सिंह

नई धारा पत्रिका का महत्व और योगदान

1947 में आज़ादी के बाद बिहार की पत्रकारिता के सामने दोहरी चुनौती थी: पहली, लोकतंत्र में स्वतंत्र और उत्तरदायी प्रेस का निर्माण; और दूसरी, साहित्य, संस्कृति और समाज की नई दिशाओं को साधना। इसी पृष्ठभूमि में 1950 में श्री उदयराज सिंह के नेतृत्व में ‘नई धारा’ पत्रिका की शुरुआत हुई। पत्रिका का नाम ही एक घोषणापत्र था, जिसका उद्देश्य पुरानी परंपराओं को सहेजते हुए नए विचारों और दृष्टियों को प्रस्तुत करना था।

‘नई धारा’ केवल एक साहित्यिक पत्रिका नहीं थी, बल्कि विचार और विमर्श का ऐसा मंच बनी जिसने कई पीढ़ियों के लेखकों, पत्रकारों और चिंतकों को जोड़ा। इसके आरंभिक वर्षों में पत्रिका ने स्वतंत्रता के बाद के सामाजिक-राजनीतिक प्रश्नों को उठाया। भूमि सुधार, लोकतांत्रिक संस्थाओं की चुनौतियाँ और ग्रामीण समाज की समस्याएँ इसकी रचनाओं में प्रमुखता से उठाई गईं। पत्रिका ने अज्ञेय, रामविलास शर्मा, नागार्जुन, फणीश्वरनाथ रेणु जैसे महत्वपूर्ण लेखकों को अपने पन्नों पर स्थान दिया।

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नई धारा के वर्तमान प्रधान सम्पादक प्रमथ राज सिंह

समाज और पत्रकारिता का संगम

‘नई धारा’ का सबसे बड़ा योगदान यह रहा कि इसने पत्रकारिता और साहित्य के बीच सेतु का काम किया। यह पत्रिका न केवल समाचारों का संकलन करती थी, बल्कि साहित्य को सामाजिक सरोकार से जोड़ते हुए विचारों की गहराई प्रदान करती थी। जब रेणु की कहानियाँ या नागार्जुन की कविताएँ ‘नई धारा’ में प्रकाशित हुईं, तो वे केवल साहित्यिक उपलब्धि नहीं रहीं, बल्कि समाज के हाशिये पर खड़े लोगों की आवाज़ बन गईं।

वर्तमान समय में पत्रकारिता अभूतपूर्व जिम्मेदारियों से गुज़र रही है, जिसमें डिजिटल मीडिया की तेज़ी और बाज़ार आधारित पत्रकारिता की चुनौतियाँ शामिल हैं। ऐसे में ‘नई धारा’ जैसी पत्रिकाएँ यह स्मरण कराती हैं कि पत्रकारिता केवल सूचना देने का माध्यम नहीं, बल्कि समाज को दिशा प्रदान करने वाली सृजनात्मक शक्ति है।

बिहार की पत्रकारिता की गौरवशाली परंपरा

बिहार की धरती ने हिन्दी पत्रकारिता को जीवंत परंपरा दी है। ‘बिहार बन्धु’ से लेकर ‘नई धारा’ तक, यह यात्रा केवल पत्रों की नहीं, बल्कि विचारों, संघर्षों और जनचेतना की यात्रा है। आज जब बिहार की महत्वपूर्ण पत्रिका ‘नई धारा’ अपने पचहत्तर वर्ष पूरे कर रही है, तो यह समय हमें अतीत से प्रेरणा लेकर भविष्य की राह बनाने का आह्वान करता है।

इस पत्रिका का संदेश स्पष्ट है कि ‘पत्रकारिता का उद्देश्य केवल घटनाओं को दर्ज करना नहीं, बल्कि समय की नब्ज़ पकड़ना और समाज को बेहतर दिशा देना है।’ इस प्रकार, ‘नई धारा’ न केवल एक पत्रिका है, बल्कि यह एक विचारधारा का प्रतीक है जो स्वतंत्रता, समानता और सामाजिक न्याय की दिशा में आगे बढ़ती है।

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