Goverdhan पूजा: गाय के गोबर से गिरिराज पर्वत बनाने का महत्व और अनकही बातें



गोवर्धन पूजा, दिवाली के अगले दिन मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पर्व कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। इस पर्व का एक…

गोवर्धन पूजा, दिवाली के अगले दिन मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पर्व कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। इस पर्व का एक विशेष महत्व है, जो भगवान श्री कृष्ण से जुड़ा हुआ है। प्रचलित कथा के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने एक बार ब्रज वासियों को इंद्र के प्रकोप और भारी बारिश से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा उंगली पर उठा लिया था। इस घटना के बाद, ग्रामवासियों को उनके जीवन में नए उत्साह और सुरक्षा का अनुभव हुआ। इसी कारण से भक्तगण आज भी भगवान कृष्ण की भक्ति में गोवर्धन पूजा का आयोजन करते हैं। इस दिन को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस दिन भगवान कृष्ण को 56 प्रकार के भोग अर्पित किए जाते हैं।

गोवर्धन पूजा का ऐतिहासिक महत्व

भगवान श्री कृष्ण की यह लीला न केवल ब्रजवासियों के लिए बल्कि सभी भक्तों के लिए प्रेरणादायक है। भागवत पुराण में वर्णित इस कथा के अनुसार, जब भगवान कृष्ण ने देखा कि गाँव के लोग इंद्र देव की पूजा कर रहे हैं, तो उन्होंने कहा कि उन्हें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, जो उनके जीवन का आधार है। गोवर्धन पर्वत ही उन्हें आवश्यक संसाधन और संरक्षण प्रदान करता है। कृष्ण जी की समझदारी से प्रभावित होकर, ग्रामीणों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का निर्णय लिया। हालांकि, इससे क्रोधित होकर इंद्र देव ने मूसलधार बारिश शुरू कर दी, जिससे गाँव में बाढ़ आ गई।

भगवान कृष्ण ने इस संकट से ग्रामीणों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर एक छांव प्रदान की। इस प्रकार, उन्होंने न केवल अपनी भक्तों की रक्षा की, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि सही मार्ग पर चलने वालों की हमेशा रक्षा होती है। इस दिन गायों की पूजा की जाती है, क्योंकि भगवान कृष्ण को गायों से विशेष प्रेम था। इस पूजा के माध्यम से भक्तगण न केवल भगवान कृष्ण की आराधना करते हैं, बल्कि गायों के प्रति भी अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं।

गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाने की परंपरा

गोवर्धन पूजा के दिन, लोग अपने घरों में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत का निर्माण करते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसका एक गहरा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। गाय का गोबर केवल एक प्राकृतिक पदार्थ नहीं है, बल्कि इसे पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि गाय का गोबर नकारात्मकता को दूर करता है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। इसी कारण से गोवर्धन पर्वत और भगवान कृष्ण के स्वरूप का निर्माण गाय के गोबर से किया जाता है।

गोवर्धन पूजा के बाद की प्रक्रिया

गोवर्धन पूजा के दिन, सुबह से ही भक्तगण गोवर्धन पर्वत की विधिपूर्वक पूजा करते हैं। शाम को, गोबर को एकत्रित करके गोवर्धन पर्वत का आकार दिया जाता है। इस पर्वत पर सरसों के तेल का दीपक जलाया जाता है और इसे घर के मुख्य द्वार पर रखा जाता है। यह संकेत देता है कि घर में किसी भी तरह की नकारात्मक ऊर्जा का वास न हो। इस गोबर को सुखाकर हवन आदि में भी उपयोग किया जा सकता है, लेकिन इसे कूड़े में नहीं फेंकना चाहिए।

गोवर्धन पूजा की सांस्कृतिक परंपरा

गोवर्धन पूजा का महत्व केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की गहराई को भी दर्शाता है। इस दिन गायों की पूजा, गोवर्धन महाराज की प्रतिमा का पूजन और अन्नकूट का भोग लगाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। यह पर्व न केवल भगवान कृष्ण की भक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह एकता, भाईचारे और समर्पण का भी संदेश देता है। सभी भक्त एकत्र होकर इस दिन को मनाते हैं, जिससे आपसी प्रेम और सहयोग की भावना बढ़ती है।

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