हिंदू धर्म में पूजा-पाठ, भक्ति भाव, मंत्र जाप और नाम जाप से जुड़े अनेक प्रश्न भक्तों के मन में उठते हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या नाम जाप करने से पाप मिट सकते हैं या पाप कर्मों के बुरे फल से बचा जा सकता है। इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए भक्तों की शंका को दूर करने के लिए प्रेमानंद महाराज जी के पास पहुंचते हैं। आइए, जानते हैं कि महाराज जी इस विषय पर क्या कहते हैं और क्या वास्तव में नाम जाप में इतनी शक्ति है कि वह पाप कर्मों को समाप्त कर सके।
क्या नाम जाप से पाप कर्म मिट जाते हैं?
जीवन में व्यक्ति कई बार जाने-अनजाने में गलतियां कर बैठते हैं और फिर उन गलतियों से मुक्ति पाने की चाह रखते हैं। इस विषय पर प्रेमानंद महाराज जी ने विस्तार से समझाया है। उनके अनुसार, नाम जाप की महिमा वास्तव में अद्वितीय है, लेकिन यह समझना जरूरी है कि कर्मों के फल से पूरी तरह मुक्त होना एक प्रक्रिया है। यदि इस प्रक्रिया को ठीक से नहीं समझा गया, तो व्यक्ति गलतफहमी में पड़ सकता है और बुरे कर्मों की ओर बढ़ सकता है।
प्रेमानंद महाराज जी के अनुसार, नाम जाप से निश्चित रूप से हमारे कर्मों का नाश होता है, लेकिन हमें कर्मों के विभिन्न प्रकारों को समझना होगा। शास्त्रों के अनुसार, कर्म मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में विभाजित होते हैं:
- संचित कर्म: ये वे कर्म होते हैं जो करोड़ों जन्मों में इकट्ठा हुए हैं।
- क्रियमाण कर्म: ये वे कर्म हैं जो वर्तमान में किए जा रहे हैं।
- प्रारब्ध कर्म: ये वे कर्म हैं जिनका फल इस जन्म में भोगना निश्चित है।
हालांकि, महाराज जी यह स्पष्ट करते हैं कि जो कर्म प्रारब्ध बन चुके हैं, उन्हें भोगना ही पड़ता है। जब मनुष्य को यह शरीर मिला, तब कुछ कर्मों का फल भोगने के लिए तय हो गया था और वह प्रारब्ध बन गया। उनका कहना है कि इस प्रारब्ध को काटना संभव नहीं है। बड़े-बड़े संतों और महात्माओं को भी अपने प्रारब्ध को भोगना पड़ता है। ऐसे में यदि नाम जाप के बाद भी दुख का सामना करना पड़ता है, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि नाम जाप निष्फल है। बल्कि यह उस व्यक्ति के कर्मों का फल है।
प्रेमानंद महाराज जी के अनुसार, नाम जाप करते समय ध्यान और श्रद्धा का होना अत्यंत आवश्यक है। अगर व्यक्ति सच्चे मन से नाम जाप करता है, तो वह अपने पाप कर्मों के फल को कम कर सकता है। इसके साथ ही, नाम जाप से व्यक्ति के मानसिक तनाव कम होते हैं और आत्मिक शांति का अनुभव होता है। इस प्रक्रिया में एकाग्रता और भक्ति का होना आवश्यक है, जिससे कर्मों का नाश संभव है।
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अगर आपके मन में इस विषय से जुड़ी कोई शंका है या आप प्रेमानंद महाराज जी के उपदेशों के बारे में और जानना चाहते हैं, तो आप हमें कमेंट बॉक्स में अपने प्रश्न पूछ सकते हैं। हम सही जानकारी प्रदान करने का प्रयास करते रहेंगे। यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी हो, तो कृपया इसे अपने दोस्तों के साथ साझा करें। इसी तरह की अन्य रोचक कहानियों के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी के साथ।
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