Journey: डॉ कलाम की बिहार यात्रा, ज्ञान और नई उम्मीदों की कहानी



डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम: भारत के 11वें राष्ट्रपति, महान वैज्ञानिक और प्रेरक विचारक डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का बिहार के साथ एक विशेष जुड़ाव रहा है।…

डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम: भारत के 11वें राष्ट्रपति, महान वैज्ञानिक और प्रेरक विचारक डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का बिहार के साथ एक विशेष जुड़ाव रहा है। उन्होंने न केवल इस राज्य की शिक्षा व्यवस्था में सुधार का आह्वान किया, बल्कि यहां के युवाओं की क्षमता पर भी गहरी उम्मीदें जताईं। अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान उन्होंने बिहार का कई बार दौरा किया और विज्ञान, तकनीकी एवं ज्ञान को सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बनाने पर जोर दिया।

2002 की ठंडी सर्दियों में पटना विश्वविद्यालय में आयोजित दीक्षांत समारोह का दृश्य अद्भुत था। वहां उपस्थित लोग केवल भारत के राष्ट्रपति को नहीं देख रहे थे, बल्कि उन्हें एक सपनों के मसीहा के रूप में देख रहे थे। जैसे ही डॉ. कलाम ने मंच पर कदम रखा, भीड़ ने “मिसाइल मैन जिंदाबाद” के नारे लगाए। जब वे बोलने के लिए खड़े हुए, तो सभागार में एक अनोखा सन्नाटा छा गया। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा—

“यदि बिहार जाग गया, तो भारत को कोई रोक नहीं सकता।”

बिहार से डॉ. कलाम का संबंध: एक प्रेरक गुरु की छवि

डॉ. कलाम का जन्म भले ही तमिलनाडु के रामेश्वरम में हुआ हो, लेकिन उनके विचार, यात्रा और सपनों में बिहार का एक विशेष स्थान था। उन्होंने इस राज्य को केवल भौगोलिक इकाई नहीं माना, बल्कि इसे भारत के पुनर्जागरण की संभावनाओं से भरी भूमि के रूप में देखा। राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने कई बार बिहार का दौरा किया, जिसमें पटना, गया, नालंदा, दरभंगा, भागलपुर जैसे शहरों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों का भी समावेश था।

उनकी ये यात्राएं औपचारिकता से भरी नहीं थीं। वे मंच और सुरक्षा घेरे की औपचारिकता को छोड़कर सीधे छात्रों, शिक्षकों, किसानों और सामान्य नागरिकों से संवाद करना पसंद करते थे। पटना विश्वविद्यालय या साइंस कॉलेज में जब वे जाते, तो सुरक्षा घेरे में नहीं रहते, बल्कि छात्रों के बीच बैठकर उनकी समस्याओं को सुनते और सरल भाषा में उत्तर देते। कई बार वे अपने तैयार भाषण को छोड़कर सीधे युवाओं से संवाद शुरू कर देते, जैसे कोई अध्यापक अपने विद्यार्थियों के साथ हो।

उनकी दृष्टि थी—

“बिहार केवल अतीत की महिमा से भरा प्रदेश नहीं, बल्कि भविष्य के भारत का ज्ञान–केंद्र बन सकता है।”

वे अक्सर नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों का उदाहरण देते हुए कहते थे—

“यह वही भूमि है, जिसने सदियों पहले दुनिया को शिक्षा का प्रकाश दिया। यहां के विश्वविद्यालयों में चीन, कोरिया, जापान और अन्य देशों से छात्र ज्ञान प्राप्त करने आते थे। यह परंपरा आज भी जीवित है, बस इसे जगाने की जरूरत है।”

डॉ. कलाम का मानना था कि बिहार में प्रतिभा और परिश्रम की कोई कमी नहीं है; आवश्यकता है तो केवल सही दिशा और अवसर की। वे बार-बार कहते थे कि यदि बिहार के युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तकनीकी संसाधन मिल जाएं, तो यह प्रदेश भारत के विकास को नई गति दे सकता है।

छात्रों के बीच सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपति

किसी भी राज्य में राष्ट्रपति का आगमन हमेशा औपचारिकताओं से भरा होता है, लेकिन डॉ. कलाम के आगमन का दृश्‍य कुछ अलग ही होता था। वे मंच पर बैठने से पहले छात्रों से हाथ मिलाना चाहते थे और उनकी समस्याओं को सुनना चाहते थे। पटना विज्ञान कॉलेज में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा—

“आपके भीतर छुपा वैज्ञानिक ही भारत का असली भविष्य है। केवल परीक्षा पास करना ही लक्ष्य न बनाइए, कुछ नया करने की जिज्ञासा बनाए रखें।”

उनकी यह बातें इतनी लोकप्रिय हुईं कि कई कॉलेजों में “कलाम क्लब” बनने लगे। इन क्लबों का उद्देश्य था—छात्रों में नवाचार, शोध और नेतृत्व की भावना जगाना। उनकी प्रसिद्ध किताबें जैसे “Ignited Minds” और “Wings of Fire” बिहार के युवाओं की मेज पर सबसे अधिक पढ़ी जाने लगीं।

2005 में राष्ट्रपति के रूप में उनके पटना दौरे में हजारों छात्रों ने घंटों धूप में खड़े होकर उनका इंतजार किया। जब उन्होंने भाषण में कहा “मैं आप सबको भारत का भविष्य देख रहा हूँ”, तो छात्रों में जोश की लहर दौड़ गई। यह कोई चुनावी भाषण नहीं, बल्कि एक सच्चे शिक्षक की बात थी।

बिहार की शिक्षा पर डॉ. कलाम की चिंता और उम्मीद

बिहार लंबे समय से शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ेपन का सामना कर रहा है। 2001 की जनगणना के अनुसार, राज्य का साक्षरता दर मात्र 47% था, जो देश में सबसे कम था। महिलाओं में यह दर केवल 33% थी। डॉ. कलाम इस स्थिति को गहराई से समझते थे। उन्होंने कहा था—

“बच्चों को शिक्षा से वंचित करना किसी भी राज्य का सबसे बड़ा अपराध है। हर गांव में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि बच्चे बिना बाधा स्कूल तक पहुंच सकें।”

उन्होंने ग्रामीण स्कूलों में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के जरिए ई-लर्निंग की भी वकालत की। उनका मानना था कि तकनीक का उपयोग कर बिहार के सुदूर इलाकों में भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पहुँचाई जा सकती है। बाद में राज्य सरकार ने “ई-शिक्षा” और “बिहार ज्ञान भवन” जैसी योजनाओं में उनकी दृष्टि के कई तत्व अपनाए।

नालंदा: ज्ञान–पुनर्जागरण का सपना

जब भी नालंदा विश्वविद्यालय का नाम लिया जाता, डॉ. कलाम की आँखों में एक विशेष चमक आ जाती थी। उन्होंने कई बार कहा—“नालंदा की धरती से जब ज्ञान का पुनर्जागरण होगा, तो यह केवल बिहार नहीं, पूरी मानवता को दिशा देगा।”

उन्होंने नालंदा को एक “इंटरनेशनल नॉलेज हब” के रूप में विकसित करने का सपना देखा था। उनके सुझाव पर नालंदा विश्वविद्यालय पुनर्निर्माण परियोजना को नई गति मिली। 2010 में जब इसका नया परिसर शुरू हुआ, तो उसमें डॉ. कलाम की कही बातें अक्सर उद्धृत की जाती थीं।

डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम साइंस सिटी: बिहार में विज्ञान का नया केंद्र

डॉ. कलाम की प्रेरणादायक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए बिहार सरकार ने पटना में ‘डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम साइंस सिटी’ स्थापित की। करीब 398 करोड़ रुपये की लागत से बना यह अत्याधुनिक विज्ञान केंद्र बिहार के छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और नवाचार की भावना को जगाने का कार्य कर रहा है।

डॉ. कलाम का मानना था—“विज्ञान केवल प्रयोगशालाओं में सीमित नहीं रहना चाहिए, यह गांवों और स्कूलों तक पहुँचना चाहिए।” साइंस सिटी इसी सोच को वास्तविक रूप देती है। इस केंद्र में ‘कलाम गैलरी’ भी विशेष आकर्षण का केंद्र है, जिसमें उनके जीवन, कार्यों और विज़न को आधुनिक तकनीक से प्रस्तुत किया गया है।

किसानों से संवाद: तकनीक और आत्मनिर्भरता

डॉ. कलाम की दृष्टि केवल शिक्षा तक सीमित नहीं थी। गया जिले में किसानों से एक मुलाकात में उन्होंने कहा था—

“आपकी जमीन गरीब नहीं है, उसे केवल नई तकनीक और सही मार्गदर्शन की जरूरत है। यदि बिहार का किसान आधुनिक तकनीक अपनाए, तो यह राज्य पूरे देश को भोजन दे सकता है।”

उन्होंने बायोटेक्नोलॉजी, जल–संरक्षण और मिट्टी परीक्षण तकनीकों पर जोर दिया। उस समय राज्य में सिंचाई की पहुंच केवल 54% कृषि भूमि तक थी। डॉ. कलाम ने कहा कि यदि जल प्रबंधन में स्थानीय नवाचार को बढ़ावा दिया जाए, तो बिहार की कृषि क्रांति संभव है। आज राज्य में कई किसान समूह और कृषि स्टार्टअप्स उन्हीं विचारों को अपनाते दिखाई देते हैं।

युवाओं का पलायन और कलाम की उम्मीद

बिहार से हर साल लाखों युवा रोजगार और शिक्षा के लिए दिल्ली, मुंबई, सूरत और बेंगलुरु जैसे शहरों में जाते हैं। पलायन पर डॉ. कलाम ने एक कार्यक्रम में कहा था—

“यह दुख की बात है कि बिहार का टैलेंट अपने घर से दूर जाना पड़ता है। लेकिन मैं देख रहा हूं कि यही टैलेंट एक दिन बिहार को वापस बदल देगा।”

उनका यह विश्वास आज भी लाखों प्रवासी छात्रों और कामगारों को प्रेरित करता है कि वे अपने कौशल और अनुभव से एक दिन अपने राज्य को वापस मजबूत बना सकते हैं। डॉ. कलाम ने कभी राजनीतिक मंचों पर हस्तक्षेप नहीं किया, लेकिन उनकी बातें नेताओं के भाषणों का हिस्सा बन जाती थीं। उनका प्रसिद्ध कथन—

“यदि बिहार जाग गया, तो भारत को कोई रोक नहीं सकता” कई चुनावी रैलियों और विकास सम्मेलनों में उद्धृत होता रहा है।

साझा सपना: विकसित बिहार, विकसित भारत

डॉ. कलाम के शब्द आज भी बिहार के युवाओं, किसानों और शिक्षकों के लिए मार्गदर्शक के रूप में हैं। उन्होंने हमें यह सिखाया कि गरीबी, संसाधनों की कमी और पलायन जैसी समस्याएं स्थायी नहीं हैं—बदलाव का रास्ता शिक्षा और तकनीक से होकर जाता है।

आज जब कोई बिहारी छात्र “Wings of Fire” पढ़ता है, तो उसे केवल एक वैज्ञानिक की कहानी नहीं, बल्कि एक ऐसे शिक्षक की झलक मिलती है जो बार–बार कहता है—

“महान स्वप्नद्रष्टाओं के बड़े सपने हमेशा साकार होते हैं।” डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम और बिहार की यह कहानी बताती है कि सपनों और हकीकत के बीच की दूरी उतनी ही है जितनी एक चिंगारी और आग के बीच। यदि कोई राज्य इस चिंगारी को प्रज्वलित कर सकता है, तो वह बिहार है—क्योंकि इसे जगाने के लिए एक सच्चे शिक्षक ने कभी सपना देखा था।

संदर्भ

लतित कुमार सिंह- बिहार के सपनों का भारत

कुमार दिनेश- सुरंग के पार बिहार

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