Entry: बिहार में नौकरशाहों की एंट्री से बदलेंगे राजनीतिक समीकरण



बिहार विधानसभा चुनाव 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारी धीरे-धीरे प्रशासनिक गलियारों को चुनावी रणभूमि में बदलने लगी है। कई वरिष्ठ आईएएस, आईपीएस और आईआरएस अधिकारी अब अपनी सेवाएँ…

बिहार विधानसभा चुनाव 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारी धीरे-धीरे प्रशासनिक गलियारों को चुनावी रणभूमि में बदलने लगी है। कई वरिष्ठ आईएएस, आईपीएस और आईआरएस अधिकारी अब अपनी सेवाएँ त्यागकर राजनीति में आने की योजना बना रहे हैं। इनमें से कुछ ने पहले से ही सत्तारूढ़ दलों का दामन थाम लिया है, जबकि कुछ अपनी खुद की राजनीतिक पार्टी स्थापित करने की दिशा में अग्रसर हैं। इसके अलावा, कुछ ऐसे भी हैं जो स्थापित राजनीतिक दलों से चुनावी टिकट की जुगत में लगे हुए हैं।

इस बार बिहार में एक दिलचस्प चुनावी परिदृश्य देखने को मिलेगा, जहाँ नौकरशाही और राजनीति के बीच एक नई जंग की उम्मीद जताई जा रही है। इन अधिकारियों के चुनावी मैदान में उतरने से यह स्पष्ट होता है कि वे अब ‘फाइलों की दुनिया’ से बाहर आकर ‘जनता की अदालत’ में अपनी किस्मत आजमाने को तैयार हैं। यह बदलाव न केवल राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करेगा, बल्कि यह आम जनता के लिए भी एक नई राजनीतिक संभावना का द्वार खोलेगा।

चुनावी पिच पर सुजीत सिंह की एंट्री

बिहार के दरभंगा जिले की गौराबौराम विधानसभा सीट पर इस बार चुनावी मुकाबला और भी रोचक हो सकता है। इनकम टैक्स विभाग में प्रिंसिपल कमिश्नर रहे सुजीत सिंह ने 13 अक्टूबर को भाजपा का दामन थाम लिया। उनके चुनावी मैदान में उतरने से राजनीतिक समीकरणों में बदलाव की संभावना जताई जा रही है, क्योंकि उनकी पत्नी पहले से ही विधायक हैं और उनका स्थानीय स्तर पर प्रभाव काफी मजबूत है। सुजीत सिंह ने वीआरएस लेकर जिस तरह से राजनीतिक पारी की शुरुआत की है, उसने भाजपा के अंदर नई रणनीति की आवश्यकता को भी जन्म दिया है।

आनंद मिश्रा ने छोड़ी वर्दी, पकड़ी सियासत की राह

बक्सर जिले के 150 से अधिक एनकाउंटर करने वाले आईपीएस आनंद मिश्रा ने वर्दी त्याग कर राजनीति में कदम रखने का ऐलान कर दिया है। मिश्रा की छवि एक सख्त पुलिस अधिकारी की रही है, और अब वे अपनी इस छवि को वोट में बदलने की कोशिश कर रहे हैं। इसके अलावा, राज्य के अपर सचिव रहे जेड हसन ने भी साफ कर दिया है कि वे भागलपुर के नाथनगर से चुनाव लड़ेंगे। यह स्पष्ट है कि यह एक नई राजनीतिक पंक्ति का निर्माण कर रहा है, जो प्रशासनिक अधिकारियों के बीच एक नया बदलाव ला सकता है।

दिनेश राय की राजनीतिक एंट्री के संकेत

राज्य के भूमि सुधार एवं राजस्व विभाग में सचिव पद पर पदोन्नत होने के बाद दिनेश कुमार राय का स्वागत जिस अंदाज में हुआ, उसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी थी। लगभग 1000 गाड़ियों का काफिला और जनसैलाब ने यह संकेत दे दिया कि राय का राजनीतिक इरादा अब केवल अफवाह नहीं रहा। माना जा रहा है कि वे रोहतास जिले के करहगर विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतर सकते हैं।

पूर्व अफसरों की बढ़ती कतार

सिर्फ सुजीत सिंह, आनंद मिश्रा या दिनेश राय ही नहीं, बल्कि कई अन्य नाम भी हैं जो राजनीतिक हवा में अपनी दिशा खोज रहे हैं। 2006 बैच के चर्चित आईपीएस शिवदीप लांडे ने 2024 में वीआरएस लेकर अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है। वहीं, 1997 बैच के वीके सिंह विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। शिक्षा विभाग के पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव एस सिद्धार्थ भले ही वीआरएस लेने से इनकार कर चुके हों, लेकिन सोशल मीडिया पर उनकी बढ़ती सक्रियता उनकी राजनीतिक रुचि को स्पष्ट करती है। इसके अलावा, अरविंद कुमार सिंह, गोपाल नारायण सिंह और लल्लन यादव जैसे रिटायर्ड अधिकारी प्रशांत किशोर के जन सुराज अभियान से जुड़े बताए जा रहे हैं।

राजनीतिक दलों की नई चुनौती

अधिकारी वर्ग की राजनीति में एंट्री ने स्थापित राजनीतिक दलों के सामने नई चुनौती खड़ी कर दी है। ये वे चेहरे हैं जिनकी प्रशासनिक छवि जनता के बीच पहले से बनी हुई है। चुनावी मैदान में उतरने के बाद ये न केवल परंपरागत उम्मीदवारों को टक्कर देंगे, बल्कि जातीय समीकरणों के साथ प्रशासनिक अनुभव को भी मुद्दा बना सकते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि 2025 का चुनावी रण केवल दलों और उम्मीदवारों के बीच नहीं, बल्कि ‘ब्यूरोक्रेसी बनाम पॉलिटिक्स’ की दिलचस्प जंग भी होगा।

अंततः, यह भविष्यवाणी की जा सकती है कि चुनावों में यह परिवर्तन बिहार के राजनीतिक परिदृश्य को पूरी तरह से बदलने में सक्षम है। आम जनता को अब नए चेहरे और नए विचारों का सामना करने का मौका मिलेगा, जो निश्चित रूप से चुनावी प्रक्रिया को और भी दिलचस्प बना देगा।

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