बिहार विधानसभा चुनाव 2025: बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों ने तेजी पकड़ ली है। नामांकन प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है और इस बार राजनीतिक दलों के बीच टिकट वितरण को लेकर जोरदार प्रतिस्पर्धा चल रही है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जन सुराज के उम्मीदवारों की सूची भी जारी की जा चुकी है, जिससे राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है। ऐसे में, टिकट के लिए होड़ मच चुकी है, जो इस बात का संकेत है कि राजनीति में अब कोई भी कोना खाली नहीं छोड़ना चाहता।
वर्तमान समय में, जहां एक ओर टिकट लेने की होड़ लगी है, वहीं दूसरी ओर यह भी एक ऐसा दौर रहा है जब बिहार की राजनीति में शुचिता का भी एक अलग ही उदाहरण पेश किया गया था। हम बात कर रहे हैं वर्ष 1952 से 1977 तक की, जब दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र की राजनीति एक अलग रंग में थी। उस समय दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र को लेकर जो कुछ भी हुआ, उसने बिहार के राजनीतिक इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा।
1977 में रामविलास सिंह को दिला दिया टिकट – डॉ संजय
रामनरेश सिंह के पुत्र और पूर्व विधायक डॉ संजय कुमार सिंह ने प्रभात खबर से बातचीत में बताया कि आज के नेताओं में एक-दूसरे का टिकट कटवाने की होड़ लगी रहती है। यह स्थिति उस समय बिल्कुल भिन्न थी। डॉ संजय ने बताया कि उनके पिता रामनरेश सिंह ने 1977 में अपनी अस्वस्थता के कारण अपने राजनीतिक शिष्य रामविलास सिंह को जनता पार्टी का टिकट दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जबकि वे स्वयं रामविलास सिंह से दो बार चुनाव हार चुके थे। यह उस समय की एक मिसाल है जब राजनीति में एक-दूसरे का समर्थन करना महत्वपूर्ण था।
बुधई गांव में जन्मे, दाउदनगर को बनाया कर्मभूमि
डॉ संजय ने अपने पिता की विनम्रता और अनुशासन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनके पिता आम जनता के प्रति जितने विनम्र थे, अपने परिवार के प्रति उतने ही सख्त। शिक्षा और विकास के मुद्दों पर वे कभी समझौता नहीं करते थे। उन्होंने क्षेत्र में कई शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना की, और औरंगाबाद-पटना रोड को पीडब्ल्यूडी की सड़क में शामिल कराया, जो कि उनके कार्यों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। हालाँकि, उनकी जन्मभूमि गोह प्रखंड का बुधई गांव था, लेकिन उन्होंने अपनी कर्मभूमि दाउदनगर को ही बनाया।
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द्वारका प्रसाद बोले- नेता राजनीति के एजेंडा पर बात करते थे
द्वारका प्रसाद, जो कि अवकाश प्राप्त अनुमंडल कृषि पदाधिकारी और वरिष्ठ रंगकर्मी हैं, ने उस समय की राजनीति को याद करते हुए कहा कि यह आदर्श राजनीति का दौर था। जात-पांत की भावना उस समय के नेताओं में नहीं थी। वे केवल अपने राजनीतिक एजेंडे पर बात करते थे। चुनाव प्रचार का समय लंबा होता था, और उम्मीदवार अपनी बातों को स्पष्ट रूप से रखते थे। वर्तमान में इस प्रकार की राजनीति देखने को नहीं मिल रही है, जिसे देखकर लगता है कि राजनीति का आदर्श स्वरूप कहीं खो गया है।
बिहार चुनाव की ताजा हलचल
बिहार चुनाव 2025 में कई प्रमुख घटनाक्रम सामने आ रहे हैं। महागठबंधन में सीट बंटवारे से पहले CPI ने अपनी पहली सूची जारी की है, जिसमें 18 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की बात कही गई है। इसी के साथ, भाजपा ने भी अपनी पहली सूची में भूमिहारों का दबदबा दिखाते हुए 71 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा की है।
वहीं, JDU के टिकट पर नामांकन करने पहुंचे अनंत सिंह ने खुली जीप में हजारों गाड़ियों के साथ अपनी उपस्थिती दर्ज कराई, जिससे यह साफ हो गया कि चुनावी माहौल कितना गर्म है। दूसरी ओर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी एक इमरजेंसी मीटिंग बुलाई है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद मोर्चा संभाला है। यह सभी घटनाक्रम इस बात का संकेत हैं कि बिहार का राजनीतिक परिदृश्य बहुत ही तेजी से बदल रहा है।
बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 की यह हलचल निश्चित रूप से आने वाले समय में राजनीति के नए रंग को दर्शाएगी और यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन से दल और उम्मीदवार इस बार के चुनाव में जीत हासिल करने में सफल होते हैं।