रामपुर में आजम खां के यतीमखाना प्रकरण की सुनवाई टली
जागरण संवाददाता, रामपुर। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव आजम खां के यतीमखाना प्रकरण में बुधवार को गवाहों के अनुपस्थित रहने के कारण सुनवाई नहीं हो सकी। न्यायालय ने इस मामले में दोनों गवाह, जिन्हें इंतजार और करीम के नाम से जाना जाता है, के जमानती वारंट जारी किए हैं। ये दोनों गवाह बचाव पक्ष के हैं और अब इस मामले में अगली सुनवाई 29 अक्टूबर को होगी।
यतीमखाना बस्ती से जुड़े आरोप
आजम खां के खिलाफ यह मामला शहर कोतवाली क्षेत्र की यतीमखाना बस्ती से संबंधित है। यह बस्ती वर्ष 2016 में जबरन खाली कराई गई थी, जब प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। आरोप है कि आजम खां के इशारे पर सपा के कार्यकर्ताओं ने पुलिस बल के साथ मिलकर इस बस्ती को खाली कराया। इस दौरान घरों में घुसकर मारपीट, छेड़छाड़, और संपत्ति की लूटपाट के गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
मुकदमे में शामिल अन्य नाम
इस चर्चित मुकदमे में आजम खां के अलावा सेवानिवृत्त सीओ आले हसन खां, सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष वीरेंद्र गोयल, और इस्लाम ठेकेदार जैसे प्रमुख नेताओं के नाम भी शामिल हैं। यह मामला एमपी-एमएलए कोर्ट (सेशन ट्रायल) में चल रहा है। यतीमखाना प्रकरण के अंतर्गत शहर कोतवाली में 12 लोगों द्वारा अलग-अलग मुकदमे दर्ज कराए गए थे। पहले इन सभी मामलों की अलग-अलग सुनवाई हो रही थी, लेकिन बाद में न्यायालय ने सभी को एकीकृत कर दिया।
सुनवाई की प्रक्रिया
इस मामले में सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता सीमा राणा ने बताया कि अभियोजन की गवाही पूरी हो चुकी है और अब बचाव पक्ष की गवाही चल रही है। गवाहों की अनुपस्थिति ने इस मामले की सुनवाई को प्रभावित किया है, जिसके कारण न्यायालय ने जमानती वारंट जारी किए हैं। अब सभी की नजरें 29 अक्टूबर को होने वाली सुनवाई पर टिकी हुई हैं।
स्रोत और आगे की कार्रवाई
इस प्रकरण की सुनवाई में हुई देरी से यह स्पष्ट है कि कानून एवं न्याय प्रणाली के तहत गवाहों का उपस्थित होना कितना महत्वपूर्ण है। यदि गवाह समय पर पेश नहीं होते हैं, तो इससे मामलों के निपटारे में देरी होती है। इसके अलावा, यह भी देखा जाएगा कि क्या गवाह समय पर उपस्थित हो पाते हैं और क्या न्यायालय इस मामले में उचित निर्णय लेगा।
समाजवादी पार्टी की राजनीति पर प्रभाव
आजम खां की यह कानूनी लड़ाई न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित कर रही है, बल्कि समाजवादी पार्टी की राजनीति पर भी इसका गहरा असर पड़ सकता है। ऐसे मामलों से पार्टी की छवि पर सवाल उठते हैं और यह मतदाता के मन में विभिन्न सवाल पैदा कर सकते हैं। आगामी चुनावों में इसका प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जाएगा।
उम्मीद है कि 29 अक्टूबर को होने वाली सुनवाई के बाद इस मामले में कुछ स्पष्टता आएगी और गवाहों की स्थिति भी साफ होगी। इसके साथ ही, यह देखना भी महत्वपूर्ण होगा कि क्या आजम खां अपनी पार्टी के लिए एक मजबूत नेतृत्व साबित कर पाएंगे या नहीं। इस प्रकरण में आगे की घटनाओं पर सभी की निगाहें रहेंगी।