Polling Day: सपा ने कहा, केवल बुर्का पहने महिलाओं की जांच करना अस्वीकार्य है, ये चुनाव कोड के खिलाफ है



सपा ने चुनाव आयोग से बुर्के वाली महिला मतदाताओं को लेकर उठाई आवाज समाजवादी पार्टी (सपा) ने हाल ही में निर्वाचन आयोग को एक ज्ञापन सौंपकर मांग की है कि…

सपा ने चुनाव आयोग से बुर्के वाली महिला मतदाताओं को लेकर उठाई आवाज

समाजवादी पार्टी (सपा) ने हाल ही में निर्वाचन आयोग को एक ज्ञापन सौंपकर मांग की है कि बुर्के पहनने वाली महिला मतदाताओं की पहचान आंगनवाड़ी सेविकाओं के माध्यम से कराने की प्रक्रिया को वापस लिया जाए। सपा का कहना है कि इस तरह के निर्देश मतदान की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। यह ज्ञापन बिहार विधानसभा चुनाव के संदर्भ में दिए गए निर्देशों पर आधारित है, जिनमें कहा गया था कि आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भी इन निर्देशों को सख्ती से लागू किया जाएगा।

इस ज्ञापन में सपा ने स्पष्ट रूप से कहा है कि मुख्य चुनाव आयुक्त का यह नया निर्देश भारत निर्वाचन आयोग के नियमों के विपरीत है। ज्ञापन में बताया गया है कि मतदान के दिन, मतदान अधिकारी को मतदाता की पहचान पत्र की जांच करने का अधिकार दिया गया है। सपा के नेता इस बात को लेकर चिंतित हैं कि यह निर्देश आयोग की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर सवाल खड़ा कर रहा है।

निर्वाचन आयोग के निर्देशों की आलोचना

सपा ने यह भी आरोप लगाया है कि इस नए नियम के माध्यम से एक विशेष समुदाय के मतदाताओं को निशाना बनाया जा रहा है। पार्टी का मानना है कि यह कदम अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है, जो कि संविधान के तहत सभी नागरिकों के मतदान के अधिकार का उल्लंघन है। सपा के प्रदेश सचिव केके श्रीवास्तव, वरिष्ठ नेता डॉ. हरिश्चंद्र सिंह और राधेश्याम जैसे नेताओं ने इस ज्ञापन में अपनी आवाज उठाई है।

सपा का कहना है कि यह निर्देश न केवल महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करता है, बल्कि यह वोटिंग प्रक्रिया में भी बाधा डालता है। इस प्रकार के निर्देशों से महिलाओं की मतदान में भागीदारी कम हो सकती है, जो कि लोकतंत्र के लिए खतरा है। पार्टी ने निर्वाचन आयोग से अपील की है कि वे इस निर्देश पर पुनर्विचार करें और इसे तुरंत वापस लें।

सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव

इस मुद्दे का सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव भी काफी महत्वपूर्ण है। खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ बुर्का पहनने वाली महिलाओं की संख्या अधिक है, वहाँ इस तरह के निर्देशों से मतदान प्रतिशत में कमी आ सकती है। यह न केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करेगा, बल्कि इससे एक विशेष समुदाय के प्रति भेदभाव भी बढ़ सकता है।

  • मतदाता पहचान पत्र की जांच: मतदान अधिकारियों को मतदाता पहचान पत्र की जांच करने का अधिकार दिया गया है।
  • विशेष संप्रदाय का भेदभाव: सपा का आरोप है कि इस नए नियम के माध्यम से बुर्के वाली महिलाओं को निशाना बनाया जा रहा है।
  • लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन: पार्टी का कहना है कि यह कदम महिलाओं के मतदान अधिकारों का उल्लंघन है।

आगे की राह

समाजवादी पार्टी ने निर्वाचन आयोग से यह भी मांग की है कि वे सभी मतदाताओं के लिए समान और निष्पक्ष नियम लागू करें, ताकि सभी को मतदान का समान अवसर मिल सके। पार्टी का मानना है कि यदि इस तरह के भेदभावपूर्ण नियमों को लागू किया गया, तो इससे सामाजिक तनाव बढ़ सकता है।

सपा ने यह भी कहा है कि वे इस मुद्दे को संसद और अन्य मंचों पर उठाएंगे, ताकि सभी मतदाताओं के अधिकारों की रक्षा की जा सके। उनका उद्देश्य है कि सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के मतदान करने का अधिकार मिले और लोकतंत्र की नींव मजबूत हो सके।

इस प्रकार, यह मुद्दा न केवल राजनीतिक लड़ाई बन चुका है, बल्कि यह समाज में एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय भी बन गया है। सपा का यह कदम यह दर्शाता है कि वे महिलाओं के अधिकारों और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं।

इस मामले में आगे क्या कार्रवाई होती है, यह देखने योग्य होगा। निर्वाचन आयोग को इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना चाहिए, ताकि लोकतंत्र की धारा को बनाए रखा जा सके।

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